...

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सोच
हमारी सोच ही
हमारा आईना है,
जैसा सोचा,
वेसा ही खुद को पाया है।
रुह से निकला हर धागा,
रुबरू खुदसे हो पाया है।
खुद के साथ वह
दूसरों को भी जान पाया है।
जिंदगी है खुबसूरत,
खुबसूरती से यह समझ पाया है।