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दर्द--बेइंतहा--
हर इक दिन मुसीबत में हूँ,
ज़िंदा हूँ यही ग़नीमत में हूँ।
हर शख़्स हुआ दूर मुझसे,
अब रातदिन खलवत में हूँ।
किसी को कैसे पुकारूँ मैं,
इस क़दर की दहशत में हूँ।
प्यार,यार,मुक़द्दर नाराज़ हैं,
अटका ऐसी फ़ज़ीहत में हूँ।
मोहोब्बत के आसार नही,
यूँ तन्हाई की फुरकत में हूँ।
किसे कहूँ मेरा हो जाए वो,
मैं ख़ुदही मेरी क़ुरबत में हूँ।
अकेला शायर--
दर्द का जोर---
© All Rights Reserved
ज़िंदा हूँ यही ग़नीमत में हूँ।
हर शख़्स हुआ दूर मुझसे,
अब रातदिन खलवत में हूँ।
किसी को कैसे पुकारूँ मैं,
इस क़दर की दहशत में हूँ।
प्यार,यार,मुक़द्दर नाराज़ हैं,
अटका ऐसी फ़ज़ीहत में हूँ।
मोहोब्बत के आसार नही,
यूँ तन्हाई की फुरकत में हूँ।
किसे कहूँ मेरा हो जाए वो,
मैं ख़ुदही मेरी क़ुरबत में हूँ।
अकेला शायर--
दर्द का जोर---
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