...

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प्रेम कवि
हाँ, मैं प्रेम कवि हूँ!
हाँ, मैं लिखता हूँ कविता प्रेम पर।
समझता हूँ हर घूँट प्रेम की,
जिसकी बूंद का स्वाद अभी अधर् को मिला नही,
बतता हूँ उसे मधु-सा मीठा अब भी!
प्रयाश प्रेम को समझ जाने का है,
या प्रयाश प्रेम तक जाने का है।
अभी अनिभिज्ञ हूँ! अबोध बालक सा!
नहीं....!!
प्रेम का पता पता है हमें।
पर अभी प्रेम को और जानना है,
समझना है कर लेने तक, क्योंकि कर लेने के बाद तो फ़िर....
बस प्रेम किया जाता है, समझा नहीं!!
© A.K.Verma