...

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किताबों का बोझ
जब हम बच्चे थे, किताबों का बस्ता,
हमको बोझ लगता था,
इनसे छूट जाए पीछा कभी तो,
ऐसा हर रोज लगता था,
अब समझ आता है, उन किताबों में ,
जिंदगी समाई हुई थी,
छिपी थी उसमें ज्ञान की वो दौलत,
जो वर्षों की कमाई हुई थी,
अब व्यस्त हैं जिंदगी में हम,
किताबों से दूरी है,
कल न पढ़ने को बहाना करते थे,
अब मगर मजबूरी है,
अब वक्त नहीं मिलता किताबें,
बैठकर पढ़ने को,
उलझा है यह जीवन,उलझन को,
ही हल करने को,
इस उलझी दुनिया के रस्ते में,
हम खुदको खोज पाते,
काश हम फिर से उन दिनों जैसा,
किताबों का बोझ पाते ।।



© Aniket Sahu



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