...

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ग़ज़ल
जब दूसरों का दिल में दुख दर्द ही नहीं है
जी तो रहे हो लेकिन ये ज़िन्दगी नहीं है

मुझ से ख़फ़ा ख़फ़ा हैं ये मेरे शहर वाले
मतलब की बात उनके मैं ने करी नहीं है

इंसानियत का मकसद है प्यार और मोहब्बत
जो नफरतों को पाले वो आदमी नहीं है

जिस में हों सिर्फ इश्क़ ओ आशिक़ की दास्तानें
जो चाहे उसको कह लो, वो शायरी नहीं है

क्यों इन ग़रीब लोगों को भूल बैठे हैं सब
क्या इनकी ज़िंदगी की कीमत कोई नहीं है

कर हौसला ! मिटा दे दुनिया से हर बुराई
चाहो अगर तो मुश्किल कोई बड़ी नहीं है

है खत्म अब ग़ज़ल ये, लेकिन ये याद रखना
लिक्खूंगा मैं हमेशा ये आख़री नहीं है
© ✍︎ 𝐀𝐪𝐢𝐛