...

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तारणहार


वो वस्त्र नहीं उतर रहे थे,
परत दर परत,
उतर रहे थे द्रौपदी के अस्तित्व से,
मोह, अहंकार, आसक्ति,
और अंत में जब बची,
बस उसकी अनछुई आत्मा,
कृष्ण ने सुन ली उसकी गुहार,
और अपनी शरण ले लिया।
© jignaa___