...

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सफर
हम चलेंगे उस सफर पर फिर कभी,
जो हमने दौर-ए-वफाओं में देख रखा है।
ये हम छोटे शहर वालों के इश्क के सपने,
कुछ एक टूट भी जाये तो क्या रखा है।
उलझन-ए-मोहब्बत कितना सुनाएं, अहल-ऐ-महफ़िल को,
घर के बङे बेटे हैं , जिम्मेदारियों को उसका सौत बना रखा है।
आज फिर रो कर, उसने दर्ज अपनी शिकायत की ,
वो कहती अब तो धर आ जा, ये बाहर क्या रखा है।
मिलन की राह में भी कांटे लिये कुछ बिरादरी के नाम पर,
ये दुनिया वाले हैं इनको इश्क से क्या रखा है।
अदब से मांग कर माफी पूछता हूँ बुजुर्गों से,
मोहब्बत सच्ची है तो ये खिलाफत क्यूँ , ये जात-पात में क्या रखा है।
#dying4her
©AK47
© AK47