...

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ज़िम्मेदारियों का तजूर्बा...उमर से बड़ी होती हैं...
जो उमर था मिट्टी में खेलने का
उस उमर में उसने मिट्टी में कुदाल चलाया हैं...
उसके तजूर्बो को... उसकी उमर से ना नापों
उसने खिलौने खेलने की उमर में...
ज़िम्मेदारियां सर पे उठाया हैं...

जब चाहिए था पिता का साया सर पे..
उस दौर में अस्थियां हाथ‌ में आया हैं....
और यूं उसे अनाथ बोल
उसका दिल ना दुखाओं साहेब...
उसने तो पिता होने से पहले ही..
एक पिता सा फ़र्ज़ निभाया है...
उसके तजूर्बो को... उसकी उमर से ना नापों
उसने खिलौने खेलने की उमर में...
ज़िम्मेदारियां सर पे उठाया हैं...

और वही लोग बोलते हैं...