" विजय का प्रकाश कहां "
अपने संग लपेट लेता है
पानी,
फिर भी समुंद्र खाली
नहीं होता,
कर लेता है सफर जिंदगी में,
किंतु वक्त से
विजय का प्रकाश कहां ?
रोशनी चुरा लेता चांद से,
धरती पर सुगंध छोड़ता कभी-कभी,
नभ में...
पानी,
फिर भी समुंद्र खाली
नहीं होता,
कर लेता है सफर जिंदगी में,
किंतु वक्त से
विजय का प्रकाश कहां ?
रोशनी चुरा लेता चांद से,
धरती पर सुगंध छोड़ता कभी-कभी,
नभ में...