...

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तेरे बिस्तर में लगी आग !
उठ जाग नींद से मोह त्याग ।
तेरे बिस्तर में लगी आग ।।

आहट से तू अनजान रहा ।
तेरा विवेक सुनसान रहा ।
तूने क्या बाहर देखा है ।
जलती जीवन की रेखा है ।
हर भाग्य किस्त में फूट रहे ।
अंबर से तारे टूट रहे ।
बंदे ! अब खुद से नहीं भाग ।
उठ जाग नींद से मोह त्याग ।।

अब देख तिमिर के तीक्ष्ण रंग ।
ये भी तेरे अब नहीं संग ।
प्रतिकार के अल्प समूह बचे ।
प्राणी में सूखे रूह बचे ।
अंबर के शब्द हुए आहत ।
सूरज ने भेजे अंतिम खत ।
मानव ! असमय कैसा विराग ?
उठ जाग नींद से मोह त्याग ।

यह प्रलय पूर्व की निशा देख ।
अगले प्रभात कि दिशा देख ।
तू कर्मवीर है कीर्तिमान ।
तुझमें विवेक है विद्यमान ।
संकल्प सिद्धि के योग भरे ।
साहस के शुभ संयोग भरे ।
तू ही धरती का शेषनाग ।
उठ जाग नींद से मोह त्याग ।।

सुजान तिवारी "समर्थ"
© Sujan Tiwari Samarth