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टूटी हुईं बेड़िया
पता कहाँ था की टूटी हुईं बेड़िया भी आवाज़ करती हैं,
शर्मिंदा आँखों के जुल्फों में छुपती हुईं आंसू की लकीरें भी खामोशी से चिल्ला रहीं थीं ,
फैसला लिया जा रहा था,
मासूम सी जिंदगी का,
दुनिया की रस्मेरिवाज़ में,
बँधी जा रहीं थीं एक तितली,
उम्र थीं खिलोनों के साथ खेलने की,
वही उम्र ने कैद कर दी,
बचपन की आज़ादी,
बालविवाह थीं पुरानी प्रथा,
लेकिन आज भी गूंज रहीं हैं,
उस मासूम की बेड़िया...
जो रस्मेरिवाज़ में बँधी थीं |
#Life&Life #writcoapp
© pb
शर्मिंदा आँखों के जुल्फों में छुपती हुईं आंसू की लकीरें भी खामोशी से चिल्ला रहीं थीं ,
फैसला लिया जा रहा था,
मासूम सी जिंदगी का,
दुनिया की रस्मेरिवाज़ में,
बँधी जा रहीं थीं एक तितली,
उम्र थीं खिलोनों के साथ खेलने की,
वही उम्र ने कैद कर दी,
बचपन की आज़ादी,
बालविवाह थीं पुरानी प्रथा,
लेकिन आज भी गूंज रहीं हैं,
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