...

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जीवन का सत्य
है राह सजी जीवन पथ की
मौसम सिंदूरी होने लगा
टूटी है लाठी जीवन की
ये कैसा सवेरा होने लगा
सबकी आँखे नम होने लगी
चहरे की चमक भिगोने लगी
उतरा न रंग एक स्याही का
दुनिया क्यों ऐसे रोने लगी
शायद उम्मीदे टूटी है
रिश्तों की डोरी छूटी है
चल रही रीत यहाँ दुनिया की
या नमी आँख की झूटी है
मखमली सेज पर सोता था
आनंदित मन दामन कर के
अब मेरी शय्या बन रही
लकड़ी डोरी से रच रच के
अंतिम स्नान है जीवन का
फिर कर्म की बारी आएगी
अपने ही पराया कर देंगे
मुझपर फेकेंगे चिंगारी
कुछ साथ बनाये थे हमने
कुछ सपने सजाये थे हमने
जीने की एक अभिलाषा थी
पर जला दिया सबकुछ हमने
सब छोड़ अकेला जाता हु
रूठे को मना नहीं पता हु
रोयेंगे कुछ दिन ऐसे ही
रिश्तों को निभा नहीं पता हु
यात्रा ये कितनी सुखद लगे
दुनिया के लोग मेरे पीछे खड़े
ना मेरी कही परछाई है
अपनों ने रीत निभाई है
अवगत हो जाओ जीवन से
जो मिट ना सके सच्चाई है
.....हर हर महादेव.....


© Roshanmishra_Official