...

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वो और मैं
#दर्पणप्रतिबिंब

आज दर्पण को देखकर
सहसा ये सवाल कर बैठी हूं
कौन हो तुम??
कुछ कुछ पहचानी सी लगती हो
तीखे तीखे से नैन नक्श
काली काली सी आंखों में
गहरे गहरे से काजल हैं
लंबी लंबी सी दो चोटियां हैं
और होठों पर बिखरी
एक प्यारी प्यारी सी मुस्कान है
तुम्हारी गुलाबी गुलाबी सी फ्रॉक
कुछ पुरानी पुरानी सी याद दिला रही है
तुम गोल गोल से घूम घूम कर
नाच रही हो
तुम खिलखिला कर
बड़ी जोर जोर से हंस रही हो
कि अचानक
आंखों के आगे बादल बादल से छा गए हैं
भर भर कर बरबस ही
आँखें बही जाने लगी हैं
अब सब कुछ साफ साफ है
वो "वो" थी
पहले वाली गुड़िया रानी
अब
मै "मैं" हूं
उलझनों ने उलझी उलझी सी
जिंदगी को सुलझाती हुई सी
बहुत बड़ी, बहुत बड़ी
एकदम बड़ी सयानी सी...


© अपेक्षा