झूठ के ठूंठ खड़े मरु वन
// #झूठ_के_ठूंठ //
गगन से बरस रही अगन,
रेत की बदरी छायी चमन;
तड़क रहा धरती का तृण,
तरु खड़ा अकेला मरु वन।
पूर्ण उजड़ चुका है जीवन,
कंकाल सा खड़ा तरु तन;
उकर आई ...
गगन से बरस रही अगन,
रेत की बदरी छायी चमन;
तड़क रहा धरती का तृण,
तरु खड़ा अकेला मरु वन।
पूर्ण उजड़ चुका है जीवन,
कंकाल सा खड़ा तरु तन;
उकर आई ...