...

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शब्द प्यार के शुरुआत की
क्या बताऊँ बरसो पहले उनसे मुलाकात हुई थी
आँखों ही आँखों से सैकड़ो सवाल हुई थी
याद है मुझे पहली मुलाकात का वो पहला शब्द
इस शब्द ने ही उनके दिल में मेरे लिए जगह बनाई थी।

पहली मुलाक़ात का पहला शब्द कुछ यूँ था
उनके सीट पर मेरा कुछ assignment था
हुई गलती मैंने उनका assignment अपना समझ कर जल्दबाजी में रख लिया
जब देखा गौर से तो उन्हें sorry बोल कर उनके डेस्क पर रख दिया।

न मैंने कुछ कहा न उन्होनें कुछ कहा
आँखों ने उनकी हल्की सी हामि और होठों ने जरा सी मुस्कान भर दी
मुझे क्या पता था वो शब्द उनके दिल के तीर कर जाएगा
पहली बार देखा है और पहली बार में ही मोहब्बत हो जाएगा।

हैरान तो तब थी मैं जब होठों ने कभी कुछ न कहा
और आँखों में प्यार का समंदर भर रखे थे
इजहार करने की हिम्मत तो बहुत थी
किन्तु मुझे दुःख न पहुँचे इसलिए अपने एहसास दवाये रखे थे।

इंतजार किया हर बार मेरे इकरार का
लेकिन मैं भी कहा कम थी करती थी मैं भी प्यार
लेकिन बार-बार छिपाती रही अपने हर जज्बात
एक बार खुद ही पूछ डाली मैं की क्या करते हो मुझसे प्यार।

उन्हें लगा जैसे उनका हो गया हो उनका काम तमाम
और साफ़-साफ़ लफ्जों में कह दिया हाँ मैं करता हूँ तुमसे प्यार
सोचा तुम तो मेरी हो ही कर लूँगा तुम्हारा इंतजार
इसलिये आजतक न कर पाया अपने प्यार का इजहार।

तब का जुड़ा रिश्ता आज तक सलामत है
बीत गए इतने साल फिर भी प्यार हिफाजत है
वो प्यार ही क्या जिसमें इंतजार न हो
कितने भी दूर रहे किन्तु पास होने का एहसास हरबार रहे।

~माधवी 😊🙏।