...

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लक्ष्य
जब गर्भ समाया था माता के,
विधि के गान भी निष्ठुरता के,
सीता सम् तप ममता का तब
लव-कुश जन तुम आए थे, औ
प्रतिक्षण हुई परीक्षा जिसकी,

सदियां उसके गुण गाएंगी
चहुं ओर, तान ये फैलाएगी
टूटा बिखरा, कई बार गिरा वो
शत् फूटा माथा ठोकर फिर भी
पार वही भव होता जिसकी
शक्ति स्वयं ही स्वयं रही है।।

कदम तुम्हारा उधर सदा ही
जिधर लक्ष्य की अक्षि रही है
उठ अर्जुन! गाण्डीव सम्भारो
जिसकी दुर्लभ चूक रही है।
संसृति टेकती उसे रही है।।
© अवनि..✍️✨