...

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अल्फ़ाज़ अहसास के
तुम सुनना कभी मुझे ख़ामोशी से,
मेरे लफ्ज़ नहीं भावनाएं बोलेंगी,
तुम ही तुम मिलोगे इसमें घुले हुए,
ख्वाहिश हो तुम सदाएं बोलेंगी,

सुनो कि इक आग सी उठती है कभी,
तो कभी "लहर" शांत हो जाती है यह,
मुझमें उठने वाली तरंग की कंपन हो तुम,
ज़र्रे ज़र्रे में मौजूद हवाएं बोलेंगी,

नहीं आती मुझे प्यार इश्क़ मोहब्बत की बातें,
मैं हर बात दिल से कहती और सुनती हूँ,
तुमसे सीख रही हूँ मैं नज़रें मिलाकर चुराना,
दिखती जो मुझमें वो अदाएं बोलेंगी,

तुम हो मेरे या किसके पता नहीं मुझे मगर,
ख़्वाबों पर किसका एकाधिकार हो पाया है,
मेरे हर पल के नज़ारे में हो तुम शामिल,
मेरी आँखों में पढ़ो, वफाएं बोलेंगी,

यूँ तो झिझकती हूँ तुम्हें देखकर मैं आज भी,
तुमसे फासलों से ही प्रेम का आलिंगन है,
पर गर तुम कहो तो तोड़ दूँ ये ख़ामोशी भी,
बेहद की हदों से गुज़र कर मेरी दुआएं बोलेंगी।