पुकार...
आओ यार शहर मे वापिस
उड़ते है संग हवा के माफ़िक
तुम कब तक तड़पाओगे बोलो कब तक आओगे
धुआँ हो रही उम्र ये अपनी
राख हो रही ज़िन्दगी भी अपनी
किसके भरोसे छोड़ा है
दूरी का़ ग़म अधुरा है .....
घोलो इश्क़ की चासनी
इसमे आओ पियो रागनी
सात सुरों का घेरा है
तुम बिन ये शख़्स अधुरा है...
© कृतिका जोशी
उड़ते है संग हवा के माफ़िक
तुम कब तक तड़पाओगे बोलो कब तक आओगे
धुआँ हो रही उम्र ये अपनी
राख हो रही ज़िन्दगी भी अपनी
किसके भरोसे छोड़ा है
दूरी का़ ग़म अधुरा है .....
घोलो इश्क़ की चासनी
इसमे आओ पियो रागनी
सात सुरों का घेरा है
तुम बिन ये शख़्स अधुरा है...
© कृतिका जोशी