...

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जंजीरें
इन जंजीरों को तोड़कर
रुख हवा का मोड़कर
चल रहे हैं देखो हम
न जाने अब किस ओर
आँखों में ख़्वाब लिए
दिल में जज़्बात लिए
चल पड़े है मंज़िल की ओर
मन में विश्वास खूब भरा है
एक नई उमंग, एक नया सवेरा है
चल दिए है रफ्ता-रफ्ता मंज़िल की ओर
अब न रुकना है, न ठहरना है
बस आगे बढ़ना है और बढ़ते जाना है
मंज़िल न भी मिले तो ग़म नहींं क्योंकि
मंज़िल से कम तज़ुर्बे भी नहींं
पाकर तज़ुर्बा ज़िंदगी में आगे बढ़ जाएंगे
इतना तो विश्वास है कि हम कुछ
नया, अलग और कुछ खास तो कर ही जाएंगे।।।

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