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कठिन समय...!
बिखरेंगे खूब़ हलाहल...
और धरती...नभ...
आकाश हिलेंगे!
यह जीवन मंथन समय है साथी,
अब सिंहासन और
ताज हिलेंगे!!
घबराकर क्यों बैठ गए तुम
गहरे... समंदरों में
आते जाते चक्रवातों से!
अभी तो परिघट्टन
शुरू हुआ है,
अब झूठे सब विश्वास हिलेंगे!!
कोई न आए विष पीने को,
कोई न तेरे दुःख का
साझी होगा!
अमृत कलश
छलकेगा जब-जब,तब
रिश्ते-नाते-यार जुटेंगे!!
खुशियां किस की हुईं
देर तक,
ये गम भी तो आने जाने हैं!
राह रोक न पायेंगे ये
दर्द के दरिया-दर्रे...
हम तुम लेकर जब हाथों में हाथ चलेंगे!!
सुन रे साथी ये दुनिया है
एक समंदर,
पुरुषार्थ को तू बिलोवन कर ले!
जब जब नभ में गूंजेगी
हुंकार.... तेरी
तब-तब दरिया... पर्वत... पहाड़ हिलेंगे!!
और धरती...नभ...
आकाश हिलेंगे!
यह जीवन मंथन समय है साथी,
अब सिंहासन और
ताज हिलेंगे!!
घबराकर क्यों बैठ गए तुम
गहरे... समंदरों में
आते जाते चक्रवातों से!
अभी तो परिघट्टन
शुरू हुआ है,
अब झूठे सब विश्वास हिलेंगे!!
कोई न आए विष पीने को,
कोई न तेरे दुःख का
साझी होगा!
अमृत कलश
छलकेगा जब-जब,तब
रिश्ते-नाते-यार जुटेंगे!!
खुशियां किस की हुईं
देर तक,
ये गम भी तो आने जाने हैं!
राह रोक न पायेंगे ये
दर्द के दरिया-दर्रे...
हम तुम लेकर जब हाथों में हाथ चलेंगे!!
सुन रे साथी ये दुनिया है
एक समंदर,
पुरुषार्थ को तू बिलोवन कर ले!
जब जब नभ में गूंजेगी
हुंकार.... तेरी
तब-तब दरिया... पर्वत... पहाड़ हिलेंगे!!
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