...

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# दूर
#दूर
दूर फिरंगी बन कर घूम रहा कोई,
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा कोई;
वृक्ष विशाल प्रीत विहार कर रहा कोई,
मन के जैसा मधुकर नहीं रहा कोई ,
पत्थर को पिघला कर खुद को खो रहा कोई,
मेरे मन भी एक आस जगी थी जिसे भुला रहा कोई ,
तुम तो ठहरे झरने का पानी तुमको सुखा रहा कोई,
@Pankaj