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ऐसा गाँव हैं , मेरा जिसको लोग बेदू कह बुलाये ,
सुबह से शाम हो जाये ,
रात का अँधेरा मन को भाये ,
ऐसा गाँव हैं , मेरा
जिसको लोग बेदू कह बुलाये ,

बचपन की यादे सताये ,
मगर गांव को देख ना पाये ,
जिम्मेदारी ने घर छुडा़ये ,
तन आज भी वही सुकून पाये ,
ऐसा गाँव हैं , मेरा
जिसको लोग बेदू कह बुलाये ,

शहर की ऊँची इमारते फीकी पङ जाये ,
जब बात मेरे गाँव की आये ,
शहर सुख सुविधाओ का मोहताज है ,
मगर बदन का दर्द आज भी मिटा ना पाये ,
ऐसा गाँव हैं , मेरा
जिसको लोग बेदू कह बुलाये ,

जब भी वार - त्योहार आये ,
सबका मन गांव जाने को भाये ,
घर - परिवार से मिलने का मौका आये ,
सबके मन में एक ही बात दोहराये ,
ऐसा गाँव हैं , मेरा
जिसको लोग बेदू कह बुलाये ,

जब भी बारिश का मौसम आये ,
अनाज - सब्जी के ढेर लग जाये ,
मतीरे का पानी सब पिये ,
और यही देशी चीज़े शरीर को मजबूत बनाये ,
ऐसा गाँव हैं , मेरा
जिसको लोग बेदू कह बुलाये ,

घर - परिवार को शहरो में ले आये ,
लोगो ने ऐसे रिति - रिवाज अपनाये ,
समय निकाल के जरूर गांव जाये ,
बच्चों को भी गांव दिखा लाये ,
ऐसा गाँव हैं , मेरा
जिसको लोग बेदू कह बुलाये ,

सब लोग शहरो के गु़लाम बन गये ,
अब तो बुढे लोग ही गांव में रह गये ,
कभी गांव की शुद्ध हवा खायें ,
सब मिलकर बेदू को आगे ले आये ,
ऐसा गाँव हैं , मेरा
जिसको लोग बेदू कह बुलाये ,

Written By - Bhanwar Mandan



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