मर्यादा - (नारसी × रोहन) - Full Poem - [भजन] [राम भक्त]
》 मर्यादा 《
सात वचन तो लेने हैं पर
सात कदम ना चलना है
रिश्तो में ना रंग वफा का
यहां किसी को भरना है
राम चाहिए सारों को
ना खुद बने पर जानकि
सीता चाहिए सारों को
ना राम किसी को बनना है
वादे करके तोड़ेंगे
क्या सीख कथा से हम लेंगे
जो प्रेम निभाना जानेगा
संगीन उन्हीं को कम लेंगे
मर्यादा पुरुषोत्तम की तो
बातें करते सालों से
हम मर्यादा ही लांघ चुके हैं
रिश्ते कैसे संभलेंगे ?
~
[महत्वपूर्ण है चरित्र
आपका चरित्र इतना पवित्र हो
की कोई उंगली उठा करके ना देखें
वही व्यक्ति सकल जहां में पूज्य होता है]
~
स्वयं को कैसे राम कहे जब
निष्ठा की ना शक्ति है
केवट भी हम क्या बने
ना दिल में वैसी भक्ति है
स्वयं को कैसे राम कहे जब
संयम ना है काम में
सीता के रहते हां आंखें
सूर्पनखा पे अटकी है
सूर्पनखा कसौटी है
जो परखे तेरा सच्चा नर
रावण भी कसौटी परखे
तेरी सच्ची नारी को
जो पार करे कसौटी को
बस वही सकेगा प्रेम निभा
जो हार गया वो पहन मुखोटे
ठगेगा दुनिया सारी को
किष्किंधा में वानर दल से
भेंट प्रभु की याद मुझे
गहने देखे सीता के तो
खुश हमें रघुनाथ दिखे
"क्या यही हार वो भाई मेरे
जो सीता ने मेरी पहने था ?"
क्षमा मांग के लखन ये बोले
"इसकी ना पहचान मुझे"
रोती आंखें प्रभु राम की
देख रही हैरान उसे
लखन बोले भैया को
"ना सच में भ्राता ध्यान मुझे"
"स्पर्श किए हैं पैर सदा ही
भाभी के मैं भ्राताश्री
आंख उठा कर देखा ना
बस पायल की पहचान मुझे"
मर्यादा की सोचा फिर से
बात कान में भर दूं मैं
रिश्ते मैले कर बैठे जो
बात पुनः वो कर दूं मैं
मर्यादा कुछ ऐसी लांघी
काले युग के लोगों ने
था जिसका दर्जा माता का
वो आज वासना वस्तु है
एक लहू का होके भी क्यों
इक दूजे को दबा रहे
रिश्तेदारी देखूं तो हां
सारे देते दगा रहे
राम की लीला...