...

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शाम की चाय
आजकल शाम छत पर गुजरती हैं
सुनहरे आसमान की रंगत दिल को सुकून देती हैं
गली कुँचें सुनसान लगते हैं
पर पंछियो की आवाज ही चारो ओर गूंजती हैं
अब तो मेरी भी उनसे अच्छी खासी दोस्ती हैं
हर शाम कल फिर मुलाकात होगी इसी उमीन्द में गुजरती हैं।
आजकल शाम की चाय छत पर ही अच्छी लगती हैं
हवा की सरसराहट मानो गालो को छूकर निकलती हैं,
मानो मेरी जुल्फों को छेड़ कर बार बार यही कहती हो की कल फिर मुलाकात होगी,
नए अल्फ़ाज़ नए जज्बात होंगे।
इस सुनसान माहौल में बस पंछियों की चहचहाट होगी
नीले आसमान में सफेद बदलो की कलाकारी होगी
जेहन में बस यही बात होगी,
शोर भरे बाजारों से अच्छी तो सुनसान गलियाँ ही लगती हैं
कम से कम प्रकृति की सुंदरता तो दिखायी देती हैं
आजकल तो शाम की चाय छत पर ही अच्छी लगती हैं,
आजकल तो शाम की चाय छत पर ही अच्छी लगती हैं।☺️☺️☺️