...

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अपना ही आंसू

वो अपना हमारा आंसूू हैं,
किसी की धड़कन किसी की पांसु है ,
जंग ए मैदान में लड़ रहा डटकर
वह कायर नहीं शेर सा धांसू है।

मोहब्बतों से मिले नफ़रते सस्ती,
बस्ती से निकली वो इक हस्ती,
उसमें कुछ ऐसा यूं तेज है
उसके दुश्मन कहे अब नहीं बसकी।

वह ग़रीबी की खेती से निकला,
क्रांति उपजायी तो कारवां बन चला,
वो घात लगाए दुश्मन बैठे
उसे मिटाने चले वह हॅंस निकला।

© जितेन्द्र कुमार 'सरकार'