...

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वो अपने नही
अपने होने का दावा जिसने हर वक़्त किया
जरुरत आने पर गैरों की तरह ही पेस आते रहे
जो दर्द पर दर्द देते रहे हम हर दर्द पर मुस्कुराते रहे
ज़िन्दगी हमारी है पर हम हमेशा उनके हिसाब से चलाते रहे
फ़िरभी वो हमपे हर बार इल्जाम लगाते रहे
ज़िन्दगी हमारी है तो ज़ीने के तरिके कब तक दूसरे समझायेंगे
ज़ब दर्द देने मे कोई कसर नही छोड़ते तो क्यों कहेगे हम कैसे मुस्कुरायेगे
खुद ही टूटते खुद ही समेट लेते खुद को
हर दर्दमे ज़ब अकेले ही आँसू बहायेगे
फिर भला कबतक हर किसी को खुश करने की चाह मे खुद को मिटायेगे
लाख अपना बना लें किसी को अगर फितरत ही नही उसकी अपनेपन की
तो हर हाल मे गैरों की तरह ही पेश आयेंगे
फिर क्यों सोचना पछताना ये नादान ज़िन्दगी
ऐसे अपनों से हम भला क्यों ना दूर हो जायेगे