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/ग़ज़ल : आपकी हर इक अदा का यार बस कायल हूँ मैं/ बह्र : 2122/2122/2122/212___
2122/2122/2122/212
आपकी आँखों में ख़ुद को देखता हर पल हूँ मैं
आपकी हर इक अदा का यार बस कायल हूंँ मैं

ये सँवरना है सिफ़र जानम तुम्हारा मेरे बिन
कान का झुमका, तुम्हारी आँख का काजल हूँ मैं

ग़ज़लों की महफ़िल में सब फनकार कहते हैं मुझे
आपकी महफ़िल में ही नाकाम हूँ पागल हूँ मैं

इस घड़ी मतलब ज़िया का आपकी नूर-ए-कलम
आप बेशक आज हैं साहब मगर हाँ कल हूँ मैं

सुन न पाए जो अगर तो झील सी ख़ामोशी हूँ
गर सुनो! लहर-ए-समंदर जैसी ही हलचल हूँ मैं

मेरी ग़ज़लों की ज़मीं पर चल रही उनकी दुकाँ
हाँ वही जो कह रहे थे कल तलक दलदल हूँ मैं

मेरे अंदर की नबातात अपनो नें ही फूंक दीं
'शम्स' अब केवल दरख़्त-ए-ज़ह्र का जंगल हूँ मैं


सिफ़र : शून्य
नूर-ए-कलम : क़लम की रोशनी
नबातात : औषधियां (जड़ी बूटियां)
दरख़्त-ए-ज़ह्र : विषैले वृक्ष

#shayri #ghazal

© 'शम्स'