ताउम्र कैद हूँ
हर्शबा मे उनमे समा जाती हूँ
ऐसा क्या हैं जो ताउम्र कैद हूँ
बड़ी खता सी लगे इस सफ़क़ मे
गर इश्क़ भी कहूँ तो मैं ग़लत हूँ
उनके वजाहत जैसे कोई नूर हैं
दीदार करूँ तो वो पंछी उड़ जाते हैं
मेरा ईज़ा उनसे तक़सीम करती हूँ
जैसे रफी़क़ हैं वो, मैं ख़ालिस...
ऐसा क्या हैं जो ताउम्र कैद हूँ
बड़ी खता सी लगे इस सफ़क़ मे
गर इश्क़ भी कहूँ तो मैं ग़लत हूँ
उनके वजाहत जैसे कोई नूर हैं
दीदार करूँ तो वो पंछी उड़ जाते हैं
मेरा ईज़ा उनसे तक़सीम करती हूँ
जैसे रफी़क़ हैं वो, मैं ख़ालिस...