...

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तन्हाईयों से वाकिफ़
तीरगी कर गया आफताब सुदूर क्षितिज में समाकर।
तन्हाईयों से वाकिफ़ कर गया दिल में आस जगाकर।

दिखता नहीं है कुछ भी ज़ीस्त में मेरी नज़रों के सामने,
बुझा गया वो शमा ज़ालिम भरी महफ़िल में जलाकर।

तिश्नगी बुझ न पाई कभी, लगी रह गई बदन में अगन,
उजाड़ गया मेरा गुलशन, कोई 'पागल' माली लगाकर।

© पी के 'पागल'