पर्दे रस्म लाज के
गिराए हैं, पर्दे समाज के,
आँखो की शर्म - लाज के;
पर्दे ये रस्मों - रिवाज के,
सबके अपने मिज़ाज के।
पर्दे अच्छे लगे बेदाग सारे,
सिमटे लज्जा - पर्दा दायरे;
शहर अलग- अलग नज़ारे,
एक
- दूजे से मिलती नहीं म्यारे।
आँख को
पलक झुकाना नहीं गवारा,
टूटा जबसे नज़र का दायरा; ...
आँखो की शर्म - लाज के;
पर्दे ये रस्मों - रिवाज के,
सबके अपने मिज़ाज के।
पर्दे अच्छे लगे बेदाग सारे,
सिमटे लज्जा - पर्दा दायरे;
शहर अलग- अलग नज़ारे,
एक
- दूजे से मिलती नहीं म्यारे।
आँख को
पलक झुकाना नहीं गवारा,
टूटा जबसे नज़र का दायरा; ...