...

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गलतफहमी
एक मैं था, एक तुम थीं और था मेरा ये दिल
कुछ ज़ख्म भरे तुमने, और ग़म में हुई शामिल
इज़हार किया मैंने, इकरार किया तुमने
तुम छोड़ गयीं एक दिन, फिर दर्द हुआ हासिल

सावन के मौसम में, पतझड़ के आलम हैं,
आँसू भी सूखे हैं, क्या इतनी सज़ा कम है।
इंतज़ार नहीं होता, अब तेरा दिल से
इंतज़ार किया बरसों, क्या इतना किया कम है।

मेरी आँखों में देखो, क्या प्यार नहीं दिखता
जो मिल कर सँजोया था, वो संसार नहीं दिखता
दुल्हन के जोड़े मे, तुम साथ खड़ी मेरे
क्या अपने मिलन का ये, त्योहार नहीं दिखता।

यूँ झूठ तो मत बोलो, तुम भी तो रोती हो
यूँ झूठी हँसी हँस के, क्यों पत्थर होती हो
अब मान भी जाओ तुम, और लौट के आ जाओ
मोती सी मोहब्बत है, क्यों लड़कर खोती हो?

तुम लौट के आओगी, इस खुशफहमी में हूँ
तुम्हे इश्क़ करुँ या गिला, गहमा गहमी में हूँ
तुम्हें दिल जो दिया था कल, उसे ठुकराने आओ
मुझे बतलाने आओ कि गलतफहमी में हूँ।

©® हिरण
@AashutoshShukla