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मज़दूर
ज़िंदगी हम तेरे मज़दूर हैं, पर हमें मजबूर मत कर,
सिर उठा के जीने दे हमें हमारी दुनिया में,
मेहनतकश हाथों को फैलाने की ज़रूरत पड़े,
उस हद तक हमें तू चूर मत कर,
हमारे खून - पसीने से ये जहाँ चलता है,
हम दिन - रात एक करते हैं,
तो लोगों को सुकून मिलता है,
हम बेबस ही सही रहने दे हमें,
दो रोटी इज़्ज़त की मिले,
कष्ट भले लाख सहने दे हमें
पर हमारी लाचारी का हर बार जनाजा निकले,
इस कदर हमें अपनी रहमतों से दूर मत कर,
ज़िंदगी हम तेरे मज़दूर हैं, पर हमें मजबूर मत कर,
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