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दो प्रकाश 🌕🔥
गंगा के इस पावन तट पर,
दिखते मुझको दो दो प्रकाश ।
एक प्रज्वलित हो रहा धरा पर,
दूजे का अनंत आकाश।
दोनो लगते मोहक मन को,
अंतर बस प्राणी का है।
व्याख्या है किसकी कैसी,
अंतर बस कहानी का है।
गंगा की चंचल धारा में,
दोनो प्रतिविंबित होते हैं।
दोनो में एक दूरी है,
प्रमुदित दोनो दुख ढोते हैं।
जैसे जैसे बढ़ता आगे,
एक दूर भागता जाता है।
हंस हंस कर परिचित ध्वनि में,
दूजा मुझे बुलाता है।
अहो चमक , ये सुंदरता ,
भयभीत प्रथम है छाया से।
जीवन की असीम कालिमा,
दूसरा लिए समाया है।
विचरण...