नतीजे से ज्यादा अमाल पे जोर
ख़ुदसे खफा होकर जीना भी क्या कोई जीना है ?
बहती आँसुओं को, तोहफा मानकर क्यूँ उसे भी तुम्हें अब पीना है ?
शिकस्त जो मिली है, क्या इसी वजह से दे रहा है खुदको सजा तू ?
जब अमाल पे तवज्जु न हुआ तुझसे, तो कैसे पायेगा बेहतर नतीजा तू ?
फिक्र मत कर, अब भी कोई देर नहीं हुई है तेरे संभलने...
बहती आँसुओं को, तोहफा मानकर क्यूँ उसे भी तुम्हें अब पीना है ?
शिकस्त जो मिली है, क्या इसी वजह से दे रहा है खुदको सजा तू ?
जब अमाल पे तवज्जु न हुआ तुझसे, तो कैसे पायेगा बेहतर नतीजा तू ?
फिक्र मत कर, अब भी कोई देर नहीं हुई है तेरे संभलने...