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ग़ज़ल
2122-1212-22/112

आजकल ज़ह्र पी रहा हूँ मैं
दोस्तो फिर भी जी रहा हूँ मैं

मैं कभी भूल ही नहीं पाया
आपका भी कभी रहा हूँ मैं
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