...

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सत्य

क्या खो गए उन रास्तों में?
या वापस लौटना इतना
मुुश्किल जान पड़ता है?

क्या वापसी में वही रास्ता
कई गुना लंबा हो जाता है?
या वो रास्ता, वापसी में तुम्हें
पहचानने से ही इंकार कर देता है,
जिसने जाते वक्त तुम्हें
वाहवाही दी थी..
या तुम हो जाते हो नाउम्मीद
जब सब कुछ वहीं नहीं मिलता,
जहां, जाते वक्त
छोड़ा होता है तुमने..

क्या किरदार बदल जाता है
लौटते हुए किसी का?
या नजरिया बदल जाता है,
देखने का सोचने का..
या खुद को भी तुम
उन्हीं नज़रों के नजरिए से देखने लगते हो,
और गुम हो जाते हो..
भूल जाते हो अपना रास्ता
या शायद अपना किरदार...

आंखों की गहराई नाप कर
वापस आना
क्या इतना मुश्किल होता है?
या पहुंच कर
डूब जाने का मन करता है,
स्वयं के अंतर्मन में ही...

सिर्फ दिशा बदल जाने से
नहीं बदल जाता
जीवन का उद्देश्य..
जरूरी नहीं,
बस वही एक दिशा ही
सत्य हो दुनिया का..
तुम्हारा सत्य अलग हो सकता है..
हर किसी का सत्य
अलग होता है दूसरे से,
न कुछ कम सही, न ज्यादा,
बस अलग..

आज भी तुम वही तुम हो,
उतने ही सशक्त
उतने ही सक्षम
उतने ही पूर्ण..
बस जारी रखो चलते रहना ,
बस यही एक सत्य है...।


© आद्या