...

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बारिशों में शहर
बचता था, छुपता था, घिरते बादलों से शहर
घुलता है भीगता है अबकी बारिशों में शहर,
तंग गलियां खुले रास्ते बौछारों से हैं लबरेज़,
हँसता है, मुस्कुराता है,अबकी बारिशों में शहर,
हर राह शहर की बड़े अरसे से थी प्यासी रही,
इस बार उफ़न आता है चन्द बौछारों पे शहर,
छतरियां सब फेंक दीं घर से बाहर निकल आये
किसी बरगद के पेड़ सा, झूमता, गाता है शहर
कुछ भी न बच सका तूफ़ान में सब बह गया
समंदर में जहाज़ सा डूबता उतराता है शहर,
कितनी रातें और दिन आस में काटे "अज़ीज़"
जाने किसके नसीब से आज इतराता है शहर,
बारिशों में भीगता है आज नाचता है शहर,
@अज़ीज़निखिल
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