एक ख़्वाब जी रहा हूँ
तुमसे बिछड़ कर
कैसे जिंदा रहा हूँ
इश्क़ के आसमान में क़ैद
एक परिंदा रहा हूँ
मौत तक को एतराज है
मेरे क़रीब आने से
जाने क्यूँ तेरी जुदाई का
इतना असर हुआ है मुझपर
मैं हूँ वाक़िफ , उम्मीद कम है
तेरे लौट आने की
मैं फिर भी तेरी राह ताकता हूँ
जाने क्यूँ तेरे इश्क़ का
ऐसा नशा चढ़ा है मुझपर
बरसों हो गए
खुद को एक नज़र
आईने में निहारे हुए
जानता...