...

2 views

अखरते रहे
साल-दर-साल यूं ही गुज़रते रहे,
ज़िन्दा रहने का हम सोग करते रहे,
कैसा ना जाने कर्मों का इक क़र्ज़ था,
सूद नाकामियों का ही भरते रहे ,
अरमां हरजाई थे, ख़्वाब थे बेवफा,
दोसतों की तरह से मुकरते रहे ,
जिंदगी ना संवर पाई अपनी कभी,
हसरतों की तरह ख़ुद बिखरते रहे,
ऐब था माथे की कुछ लकीरों में ही,
कामयाबी को हम ही अखरते रहे,
जी गये वो जिन्होंने न परवाह की,
हम ग़लत और सही बीच मरते रहे,
रास आया न जीवन ये "बैरागी" को,
हादसे हर क़दम पर उभरते रहे। ...

© ajay_bairagi