...

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शिकायतें हैं तुमसे....
शिकायतें तो बहुत हैं तुमसें
पर कहना हम मुनासिब नहीं समझतें

कुछ शिकायतें हम दोनों के दरमियान होनी भी जरूरी हैं
क्युकि फटकार लगाने का मौका भी तो जरूरी हैं

जहाँ शिकायतें अक्सर कम पाई जाती हैं
वहाँ प्रेम की भरपाई भी कहाँ अच्छे से हो पाती हैं

बिन शिकायत के तेरी ये मोहब्बत अधुरी सी लगती हैं
जब मिल जाए दो चार शिकायतें तब मोहब्बत मुक्कमल होने लगती हैं।

© sk chouhan