...

9 views

अशुद्ध लक्ष्य
जब लक्ष्य तेरा है एक नहीं,
जब लक्ष्य तेरा कोई शुद्ध नहीं,
तो प्राप्त कहां से होगा बंदे,
चाहे तू हिम को चढ़ना,
मगर कदम एक बढ़ा न पाए,
कर्म नहीं तू करना चाहे,
दर-दर भटकता करता फरियाद,
मन तेरा है चंचल इतना,
एक जगह तो लग ना पाए,
कदम बढ़ाए एक राह पर,
दूजी रह के गुण को गाए,
किताब खोल है बैठा पढ़ने ,
मगज मगर स्थिर होना पाए।
समय काम के चिंतन अपनों का,
संग अपनों के काम का चिंतन,
जब बुद्धि घूमे उल्टी तेरी,
तो लक्ष्य कहां से पाएगा,
की ऊपर आना चाहे तू,
खींच कर दूजे को नीचे,
तब प्राप्त लक्ष्य भी ये तेरा,
सफल नहीं कहलाएगा,
अशुद्ध लक्ष्य बन जाएगा।