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उम्र
ए उम्र यू कह कहे ना लगा
मुझ पर
मैं वो ही हूँ
जो जवानी की दहलीज़
पर रख कदम तेरे पीछे
भागती चली आ रही हूँ
हुस्न जो बख्शा हैं खुदा ने
मुझको
उसको हर अदा से
संझो के चली आ रही हूँ
तू तो बढ़ती चली जा रही हैं
पर जवानी के दामन में,
लिपटी मैं
अब भी सबके
होश उड़ाते चली आ रही हूँ
शायरों की महफिलो में
चर्चे हैं मेरे हुस्न के
कि उम्र के इस पड़ाव में भी
तू मुझपर असर कर ना पाई हैं,
कह कहे लग रहे हैं तुझ पर,
मेरे हुस्न पे अब भी शायरीया
लिखती चली आ रही हैं
मुझ पर
मैं वो ही हूँ
जो जवानी की दहलीज़
पर रख कदम तेरे पीछे
भागती चली आ रही हूँ
हुस्न जो बख्शा हैं खुदा ने
मुझको
उसको हर अदा से
संझो के चली आ रही हूँ
तू तो बढ़ती चली जा रही हैं
पर जवानी के दामन में,
लिपटी मैं
अब भी सबके
होश उड़ाते चली आ रही हूँ
शायरों की महफिलो में
चर्चे हैं मेरे हुस्न के
कि उम्र के इस पड़ाव में भी
तू मुझपर असर कर ना पाई हैं,
कह कहे लग रहे हैं तुझ पर,
मेरे हुस्न पे अब भी शायरीया
लिखती चली आ रही हैं
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