...

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हद-ए-तन्हाई
रूह ज़ख्मी है आगे चिलमन लगाए रखिये,
दिलों में जरा तुम रूहानियत बनाए रखिये।

इन होंटो की प्यास नही जाम होंटो का तुम,
फ़क़त निस्बत बनाईये और बनाए रखिये।

ये शब-ए-रातें हैं ये कभी ओझल नही होतीं,
उसकी यादों को "मय" से बहकाये रखिये।

दर्द को पैरहन बनाकर अब ओढ़ लीजिए,
सर्द-ए-मौसम--ए--फ़िज़ा से बचाए रखिये।

ये गुलिशतां-ओ-हँसी-मुस्कुराहट नक्श की,
बिखर कर भी ए-शाइर इसे जगाए रखिये।

इतंजाम होगा तेरे वास्ते भी कुछ ख़ुदा का,
उसकी करा-मात पर नज़र जमाए रखिये।

मुहब्बत पर ज़ोर आख़िर किसका चला है,
दिल दर्द सहता है तुम दायरा बढ़ाए रखिये।

साँसे गिन न ले आख़िरी आज जिगर,मेरे,
ज़नाज़े की ख़बर पहले से छपवाए रखिये।

dead inside.









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