अपने पराए।
दिमागी नशे फटती है।
एक अजीब तरीके का मन मे ख्याल चलता है।
सिने में आग सी लगती हैं।
दर्द के सारे एहसास और गहरे होते हैं।
जैसे जैसे दिन ढलता जाता है।
अब मुझमें मैं नहीं
दर्द ए समुद्र की लहरे उठती हैं।
ये सांसे उफान लिए।
मरने की आजकल तलब करती हैं।
ऐसे जैसे कोई मुझमें दिन रात खलता हैं।
यहां कहां लोग अपने होते हैं।
यहां सपने बस खाक होते हैं।
ये जिंदगी भी अब तो जीने से डरती हैं।
एक उम्र छोटी सी रि मोरी।
जानें कितने सपने खाक होते देखे हैं।
ये रिश्ते सारे मेने अपनो से
अपने आप पराए होते देखे हैं।
कहां यहां कौन हैं अपना।
मरने के बाद भी लोगो को मेने
अपनो को बध दुआएं देते देखे हैं।
जीते जी ही चैन नहीं।
मरने के बाद भी चार लोगो को
उसकी खिलाफत करते देखे हैं।
खुद के हाथ खून से सने
खुद पाप के भागीदार वो।
मगर बात पुण्य की करते देखे हैं।
मेरा शरीर अब तुछ नश्वर
कहा अब जिंदगी का बसेरा है इसमें।
अपनो के हाथों ख्वाब
धुआं होते देखे हैं।
सब मोह माया है।
यहा किस को किस की पड़ी है।
किस को किस के दर्द की सूजी हैं।
जो जीवन मे कभी जिस्म पर
एक आंच तक नहीं आने दिए।
यहां मेने ऐसे अपनो को भी अपनो की
चिता के आग लगाते देखें हैं।
यहां कोन अपना कोन पराया है।
सब मतलब के तलब गार
मतलब के लिए मतलब से
एक दूसरे के संग रहते हैं।
भोग विलास में तृप्त सब
कहां साधु...
एक अजीब तरीके का मन मे ख्याल चलता है।
सिने में आग सी लगती हैं।
दर्द के सारे एहसास और गहरे होते हैं।
जैसे जैसे दिन ढलता जाता है।
अब मुझमें मैं नहीं
दर्द ए समुद्र की लहरे उठती हैं।
ये सांसे उफान लिए।
मरने की आजकल तलब करती हैं।
ऐसे जैसे कोई मुझमें दिन रात खलता हैं।
यहां कहां लोग अपने होते हैं।
यहां सपने बस खाक होते हैं।
ये जिंदगी भी अब तो जीने से डरती हैं।
एक उम्र छोटी सी रि मोरी।
जानें कितने सपने खाक होते देखे हैं।
ये रिश्ते सारे मेने अपनो से
अपने आप पराए होते देखे हैं।
कहां यहां कौन हैं अपना।
मरने के बाद भी लोगो को मेने
अपनो को बध दुआएं देते देखे हैं।
जीते जी ही चैन नहीं।
मरने के बाद भी चार लोगो को
उसकी खिलाफत करते देखे हैं।
खुद के हाथ खून से सने
खुद पाप के भागीदार वो।
मगर बात पुण्य की करते देखे हैं।
मेरा शरीर अब तुछ नश्वर
कहा अब जिंदगी का बसेरा है इसमें।
अपनो के हाथों ख्वाब
धुआं होते देखे हैं।
सब मोह माया है।
यहा किस को किस की पड़ी है।
किस को किस के दर्द की सूजी हैं।
जो जीवन मे कभी जिस्म पर
एक आंच तक नहीं आने दिए।
यहां मेने ऐसे अपनो को भी अपनो की
चिता के आग लगाते देखें हैं।
यहां कोन अपना कोन पराया है।
सब मतलब के तलब गार
मतलब के लिए मतलब से
एक दूसरे के संग रहते हैं।
भोग विलास में तृप्त सब
कहां साधु...