...

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मजदूर मुसाफ़िर
ना मददगार है कोई , ना कोई रहनुमा हमारा,
बढ़े चले जा रहे हैं, रुकेंगे कहाँ !

थोड़ा धर्य थोड़ा हिम्मत दिल में और भर लो
ओ मुसाफिर साथियों....
चीर-लम्बी राह हैं , रुकेंगे कहाँ !

राह में भुख प्यास से यदि हिम्मत टूटे तो धर्य भी रख लेंगे,
ये सुनसान राहों में अन्न - जल खोजेंगे तो मिलेंगे कहाँ !

वक्त का चोट कहता है यही जो बीत गये खुशी के पल करोना महामारी आने से पहले,
वह वक्त फिर से आएँगे कहाँ !

आओ मुसाफिर साथियों इस पल को भी यादगार बना लें , आनंद मन ना सही दुखों की ही सफर ए दास्तान बना लें,
साथ चलते-चलते जो बातें होंगी अभी, फिर करेंगे कहाँ !

हम भागते रहे अच्छे दिन के लिए हर दिन हर जगह ,
सुख जो अपने झोपड़ी में है, वो मिलेगा कहाँ !


✍️ Laks
Mechanical Engg ( Jharkhand )