...

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"शहीद की बूढ़ी माँ"
सूनी सी एक शाम को थामे अपनी बाहों में,
बिछाएं बैठी थी पलके, सदियों से खामोश राहों में,
कांपते हाथों से सुलगा रही थी लकड़ियाँ चूल्हे में,
घुल रहा था धुंआ, आँखों से बहते अश्को में,
दूर रेल की सीटी, चीर रही थी कमरे के सन्नाटे को,
सुनकर जिसे दौड़ रही थी,
चेहरे पर उसके खुशियों की लहरे कई,
दस्तक सुन दरवाजे पर, सहम सी वो जाती हैं, ...