बचपन
बचपन कितना प्यारा था, सपनो से भी न्यारा था|
कितनी हसीन यादें थी, खुशियों की बरसातें थी
अच्छा बुरा पता नही,सब हमारे अपने थे|
हम भी कभी बड़े होंगे, बस यही हमारे सपने थे|
तेरा मेरा कुछ भी नही, हर बात बस हमारा था,
माँ का आँचल ही उस वक्त, हमारे सुख-दुःख का सहारा था|
नानी के घर जाते थे, लड्डू-पेड़े खाते थे,
बिना उनकी कहानियों के, पलके एक न करते थे|
गर्मियों की छुट्टी मे गाँव की सैर करते थे,
दादा-दादी की लाड़-प्यार मे, हम भी खोए रहते थे|
गाँव के दोस्त, वो भी कितने सरल और सच्चे थे,
बड़े-बड़े पेड़ों मे चढ़कर हमे फल तोड़कर देते थे|
प्लास्टिक की नही मिट्टी के खिलौने खेलते थे
मिट्टी से ही नये महल बनाकर, हमे उन महलों के राजा कहते थे|
सड़कों के बहते पानी मे,कागज की कस्ती बहाते थे,
जो कागज न मिलती तो, कॉपियों के पन्ने फाड़ ले जाते थे|
दोस्तों के साथ-साथ , किताबों से भी पहली दफा दोस्ती हुई थी,
वो बचपन था, जब...
कितनी हसीन यादें थी, खुशियों की बरसातें थी
अच्छा बुरा पता नही,सब हमारे अपने थे|
हम भी कभी बड़े होंगे, बस यही हमारे सपने थे|
तेरा मेरा कुछ भी नही, हर बात बस हमारा था,
माँ का आँचल ही उस वक्त, हमारे सुख-दुःख का सहारा था|
नानी के घर जाते थे, लड्डू-पेड़े खाते थे,
बिना उनकी कहानियों के, पलके एक न करते थे|
गर्मियों की छुट्टी मे गाँव की सैर करते थे,
दादा-दादी की लाड़-प्यार मे, हम भी खोए रहते थे|
गाँव के दोस्त, वो भी कितने सरल और सच्चे थे,
बड़े-बड़े पेड़ों मे चढ़कर हमे फल तोड़कर देते थे|
प्लास्टिक की नही मिट्टी के खिलौने खेलते थे
मिट्टी से ही नये महल बनाकर, हमे उन महलों के राजा कहते थे|
सड़कों के बहते पानी मे,कागज की कस्ती बहाते थे,
जो कागज न मिलती तो, कॉपियों के पन्ने फाड़ ले जाते थे|
दोस्तों के साथ-साथ , किताबों से भी पहली दफा दोस्ती हुई थी,
वो बचपन था, जब...