...

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बाढ़ की विभीषिका

बिजली चमकती,मेघ गरजते,
जलद धारा बहती आती,
धरती कांपे, धारा थर्राए,
बाढ़ रोद्र रूप ,है दिखलाती।

नदियों का उफान जब आता,
शहरों को जलप्लावित कर जाता,
मानव जीवन थम-सा जाता,
जल का भयंकर रूप दिखाता।

सड़कों पर जल की चादर बिछी,
गली-गली में पानी की गहराई,
राहत की आस में बैठे लोग,
स्वजनों से होता वियोग।

पानी की गर्जना, आसमान का रंग,
जीवन मरण के मध्य की जंग,
चिराग बुझते, हौसले टूटते,
बाढ़ का कोलाहल, सन्नाटा लूटते।

बालकों की आंखों में है भय,
वृद्धों की आवाज में कंपकंपाहट,
नदियों का उफान, जीवन का क्षय,
धरती पर विपत्ति की आहट।

परंतु, समय के संग,
फिर एक नयी सुबह आएगी,
बाढ़ के इस कहर के बाद,
जीवन की धारा फिर बह जाएगी।

सिखाती बाढ़ हमें, संघर्ष का मर्म,
प्रकृति की शक्ति, मानव का धर्म,
साहस और संयम, संकट में सहारा,
बाढ़ के बाद, नया सवेरा प्यारा।
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