...

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क्यों...?
हज़ार निगाहें फेकी तुझपे,
क्यों तुझपे एक ना लगी..!
राग रंग बिखेर दिए मैंने,
क्यों तेरी नजर ना पड़ी..!

महफ़िल में कुर्बत को मरी में,
क्यों तुझे भनक ना हुई...!
शान ओ शौकत हार दिए सब,
क्यों तुम्हें फ़िक्र ना हुई...!

भीगी ठिठुरती रही मैं तनहा,
क्यों तुझे एहसास ना हुआ...!
जल गया पानी से बदन मेरा,
क्यों तेरा इशारा भी ना हुआ..!

खेलती रही बैरंग हो हवाओं में,
क्यों तेरा सहारा ना हुआ...!
उड़ा गई थी जो तूफ़ान कश्ती को,
क्यों वहां आशियां ना हुआ...!

अब दफ़न हो जाने दो मुझे,
शिकायत का कोई बहाना ना रहा,
सता रही थी ज़िन्दगी घड़ी घड़ी,
जनाजे पर क्यों तेरा आना ना हुआ..!

ठहर जा वहीं, पास ना आना,
रूह को अब ये गवारा ना हुआ...!
लौट आऊंगी तेरे प्यार को देख वहां से मैं,
लौटकर जहां से दुबारा, किसीका आना ना हुआ।
© a_girl_with_magical_pen