क्यों...?
हज़ार निगाहें फेकी तुझपे,
क्यों तुझपे एक ना लगी..!
राग रंग बिखेर दिए मैंने,
क्यों तेरी नजर ना पड़ी..!
महफ़िल में कुर्बत को मरी में,
क्यों तुझे भनक ना हुई...!
शान ओ शौकत हार दिए सब,
क्यों तुम्हें फ़िक्र ना हुई...!
भीगी ठिठुरती रही मैं तनहा,
क्यों तुझे एहसास ना हुआ...!
जल गया पानी...
क्यों तुझपे एक ना लगी..!
राग रंग बिखेर दिए मैंने,
क्यों तेरी नजर ना पड़ी..!
महफ़िल में कुर्बत को मरी में,
क्यों तुझे भनक ना हुई...!
शान ओ शौकत हार दिए सब,
क्यों तुम्हें फ़िक्र ना हुई...!
भीगी ठिठुरती रही मैं तनहा,
क्यों तुझे एहसास ना हुआ...!
जल गया पानी...