...

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आखिर क्यों ? ?

रफ्ता रफ्ता छूट रहा है सब कुछ
पर क्यूं ये मन स्वीकार नहीं करता ?

अविराम मुझे जीवनपथ पर चलने से
क्यूं ये मुझको इनकार नहीं करता ?

मिट्टी की इस काया को
जब मिट्टी में ही मिलना है

तो फिर क्यूं इस सच्चाई को
ये स्वीकार नहीं करता ?

घिरे हैं अनगिनत सवाल
बादलों से मन में

फिर क्यूं कोई जवाबों की
बौछार नहीं करता ?

© Rekha pal